शादी करना क्यों जरूरी है ?

शादी करना इसलिए जरूरी है क्योंकि व्यक्ति जीवनभर लापरवाह न बना रहे और उसे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो सके। प्रकृति के बनाए नियम के
अनुसार स्त्री को पुरुष के और पुरुष को स्त्री के प्यार की जरूरत होती है। बिना प्यार के वह कई बार मानसिक बीमारियों का शि

कार हो जाता है। इसलिए हेल्थ के लिहाज से भी शादी जरूरी है।

शादीशुदा दोस्तों के बीच खुद को अकेला महसूस करेंगे। शादी न करने पर लोग आपको आल टाइम अवेलेबल समझेंगे और बेवजह लाइन मारने से बाज नहीं आएंगे। सोशली बायकाट कर दिया जाएगा, लोग हजार तरह की बाते बनाएंगे कि कहीं आपमें कोई कमी तो नहीं है। लिव इन रिलेशनशिप जैसी चीजों में फंस सकते हैं, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है और भविष्य भी सुरक्षित नहीं है।जब आपके भाई-बहन अपनी शादीशुदा जिंदगी में मस्त हो जाएगे तो उनके बीच रहते हुए भी आप अलग-थलग हो जाएंगे क्योंकि उनकी सोच, भविष्य के सपने, बातचीत के टॉपिक अपने परिवार व बच्चों से जुडें होंगे और आपके पास इन टॉपिक्स पर बात करने के लिए कुछ नहीं होगा।
शादी के फायदे
पूरी जिंदगी हर सुख-दुख में साथ निभाने के लिए एक साथी मिल जाएगा।आपका अपना खुद का एक घर और परिवार होगा जिसे आप अपने मन मुताबिक चलाएंगी।
शादी के बाद आप बहुत से नए रिश्तों से जुडेंगी जिन्हें निभाने का अपना अलग ही मजा होगा।

विवाह और विवाह के शास्त्रीय उदाहरण

 

1. ब्रह्म विवाह ब्रह्म को जानने वाले व्यक्ति द्वारा ब्रह्म को प्राप्त व्यक्ति वर लिए ब्रह्म वादी हर तत्व में ब्रह्म ईश्वर देखता है । उसे अपनी कन्या लिए या उस कन्या द्वारा वर चुनने में दिक्कत होती है इसलिए इसमें वर योग्यता लिए स्वयमवकर में एक शर्त रख दी जाती है जो उसे पूर्ण करेगा वो विवाह करेगा । जैसे राजा जनक द्वारा सीता लिए योग्य वर हेतु विश्व समक्ष शिव धनुष पर प्रत्ययनजा चढाने की शर्त जो पूर्ण करे वो इसीका है वही इस लिए ईश्वर ब्रह्म है । अन्य उदाहरण द्रोपदी और अर्जुन का विवाह जिसमे मछली की आंख को तीर मार कर विवाह ।

2. दैव विवाह इसमे कन्या ही अपने योग्य वर को पसंद करती है संसार मे जो भी विवाह करना चाहे वो सामने आए यदि कन्या उसे अपने योग्य पाती है तो उसे वर माला गले मे डाल कर जगत से चुन लेती है । उदाहरण : विश्व मोहिनी और नारायण का विवाह, लक्मी और विष्णु का विवाह , शिव सती का विवाह फिर शिव पार्वती का विवाह । सावित्री का जंगल मे सत्यवान को चुन लेना फिर सावित्री और सत्यवान का विवाह ।

3. रमैनी (विवाह) यह विवाह असुर‌ निकंदन रमैनी से सम्पन्न होता है। जिसमें विश्व के सर्व देवी-देव तथा पूर्ण परमात्मा का आह्वान तथा स्तुति- प्रार्थना होती है। यह विवाह लगभग 17 मिनट में सम्पन्न हो जाता है, जिसमें किसी भी प्रकार का ना तो दहेज दिया जाता और ना ही फिजूलखर्ची की जाती है।  इस तरह के विवाह कबीर पंथी तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों के द्वारा किया जाता हैं। इस विवाह को रमैनी भी कहा जाता है

4. आर्श विवाह कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके दोनों के स्वेच्छा और बिना अन्य दबाव के) कन्या से विवाह कर लेना ‘अर्श विवाह’ कहलाता है। किसी सेवा कार्य या धार्मिक रूप से भले के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना या कन्या और वर का आपसी सहमति से विवाह ‘दैव विवाह’ कहलाता है। किसी पर कृपा कर उनसे विवाह जैसे : श्री कृष्ण ने 16000 कन्या व स्त्रियों से विवाह किया जो नरकासुर की कैद में नरक तुल्य जीवन जी रही थी । श्री कृष्ण द्वारा एक किन्नर अर्यमा से विवाह, तिरुपति बालाजी और पद्मनी का विवाह जिसमे पद्मनी से विवाह करने बालाजी अपनी गायो और कुबेर से धन उद्धार लेकर पद्मनी के पिता को देते है ।

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