आज कल हमारे समाज मै सबसे ज्यादा अंधविशवास है जबकि इसका कोई ठोस आधार नहीं है |
यह एक काल्पनिक भरम है ,लेकिन फिर भी इसके जाल मै फसते जा रहे | आप अच्छी तरह से जानते है की आप जिस परिवार मै जन्म लेते है ,आपकी जैसी लालन पोसन होते है | आपको जैसे संस्कार दिए जाते है , आप वसी ही बन जाते है | और आप उसी अंधविशवास मै जीते है की यही सही है | यह सब हमारे उस महौल और वातावरण का असर होता है | हमे जो कहानी सुनाते है ,हम वही बुन लेते है | बाल समय मै जो हम सुनते है ,उसे ही सच मानते ,इस मामले मै कभी कभी बड़े भी अंधविशवास मै होते है | इस तरह से बच्चे जब बड़े होते है ,अपने पीढ़ी को भी वही बाते बताते है | इस प्रक्रार अंधविशवास की प्रथा चलती आ रही है |
समाज मै बढ़ता हुआ अंधविशवास(Increasing superstition in society)
जैसे की हम जानते है की ,सम्माज मै सभी का अपना अपना मान्यताएं है अंधविशवास को लेकर | सभी का अपना कर्मकांड होते है | इनमे से किसी किसी का तो अपना एक ही गुरु रहते है | जिसके बातों पर आँख बंद क्र के भरोसा करते है लोग उनको सुनते है ,उनको पूजते है | उनकी कही हुई बात को मान कर आगे चलते है ,चाहे वह सही हो या गलत | कुछ लोग तो अंधविशवास पर इसलिय विशवास करते है ,ताकि वे अपनी गलती या असफलता किसी और पर थोप सके | कुछ ऐसे भी होते है जो वास्तविकता का सामना करने से डरते है | ऐसे लोग भी अंधविशवास के शिकार होते है |
अंधविशवास के च्चकर(After superstition)
जो व्यक्ति दिल से मजबूत नहीं होगा ,वह न जाने कितने सारे बेहेम अपने अन्दर रखा होगा उसको हमेसा बुरे प्रभाबो का डर सताता होगा | हम सबने भौतिक विकास तो कर लिया है ,लेकिन मानसिक रूप से हम संकीर्ण और अंधविशवास मई ही जी रहे है | आपको पता है की पढ़े लिखे व्यक्ति जो सभ्य कहलाने वाले हमारे समाज मै अंधविशवास का ही बाते बोलते है |
इस तरह से जितने मानव जाती है सभी अंधविशवास पड़े हुए है ,ये सब इतने विशवास करते है की अगर कोई इन्हे मना करे तो ये उनकी जान लेने पर आ जायँगे |नये विचार वाले लोग अगर परिवर्तन करना चाहते है | तो उनके माता -पिता ये कहते है की हमारे घर की देवी देवता नराज हो जायँगे।,और हम सब बर्बाद हो जाएंगे | हम किसी को भी मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे | समाज मै हमारी नाक कट जाएगी ,अगर हम अपनी परम्परा को छोड़ेगे तो तुम विदेश से पढ़ कर आये हो इसलिय तम्हे मजाक लग रहा है ,जो सालों से हमारे पुरखों ने इस प्रथा को अपनाते आ रहे | इसलिय हम कभी भी नहीं होने देंगे | अगर तुहे इस परिवार मै रहना है तो तुम्हे भी यही करना होगा |
दीप जलाने की परम्परा(The tradition of lighting the lamp)
अब दीप जलाने की जो परम्परा अंधरे को रोशनी देने के लिए होता है न की कोई भी और चीज के लिए |
लेकिन हमारे समाज मई यह भी एक अंधविशवास है की दीवाली की रात जुआ खेलने से शुभ होता है | और फिर क्या होताहै जुआ खेल कर अपने किस्समत को आजमाते है | इस च्चकर मै जो भी कोई जीतता है या हारता है वह अपना किसम्मत पर भरोसा करता है | अब कौन बताए की यह एक प्रकार से खेल है | अब इसमें जो हारता है उस व्यक्ति का सम्पति भी जाता है और वह अन्दर से टूट भी जाता है | और बह व्यक्ति बहुत ज्यादा निर्धन हो जाता है | और उसकी घर परिवार कंगाल हो जाता है | लेकिन यह सब सहता है की हमारे भाग्य अच्छी नहीं थी |
चलना ही जिन्दगी है ,क्योकि रुकना मृत्यु का दूसरा नाम है |
यात्रा करते समय भी अंधविशवास(Superstitious even while traveling)
अंधविशवास के जाल मै इस फस गये है की निकलने की नाम ही नहीं लेते जैसे की हम देखते है ,की कोई व्यक्ती कही जा रहे होते है उस समय किसी ने छींक दिया तो वह जाना रोक देते है और उस व्यक्ति पर गुस्सा करते है अगर रास्ते मै कही जा रहे होते है तो वहा बीच मई बिल्ली आकर रस्ते काट दे तो वो वही पर रुक जाते है | हलाकि उनके अपने मंजिल तक पहुंचने के लिए बहुत कम समय हो फिर भी अंधविशवास के कारण आगे नहीं बढ़ते है | इस तरह कई बार उनके ट्रेन बस या किसी दफ्फतर का इंटरव्यू भी छूट जाते है मगर अंधविशवास को नहीं तोरते है |
अंधविशवास से कैसे छुटकारा पा सकता है ?(
How to get rid of superstition?)
इसके लिए हमे सबसे पहले इनका कारण ढूढ़ना होगा | आखिर ये है क्या अंधविस्वास और कहा से उपजते है ? जैसे की हम जानते है की इसके जड़ ज्यादातर हमेसा लालच या डर मै देखी जा सकती है | इनका असली रूप देखकर अपने आप पर आपको हसी आने लगेगी | और इस तरह से अंधविशवास अपने आप खत्म होने लगते है देखा जाय तो सभीको अपनी सोच के साथ जीने का अधिकार मिला है लेकिन एक मानव होने के नाते हमे आज के वज्ञानिक या तार्किक होना चाहिए | मेरा कहने का मतलव यह है की सोच वही अपनाय जो सही हो ऐसे करने से मन की अंदर आत्मविवास जगता है और आपके बाल बच्चे भी इस अंधविशवास से बच सकते है