चलना ही जिन्दगी है ,क्योकि रुकना मृत्यु का दूसरा नाम है |
इस धरती पर जितने भी जीव जंतुओं , पशुओ को देखिये | हमेशा गति मै रहते है | वे आलस्य मै चूर कभी नहीं रहते , सतत उद्योगशील बने रहते है | गतिमान जीवन के कारण वे स्वस्थ ,सोंदर्य और स्फर्ति का आनन्द प्राप्त करते हैं | व्यक्ति जो अपनी शारीरिक ,मानसिक या आध्यित्मक शक्तियों का निरंन्तर उपयोग करता है , उसकी शक्तियो तथा अनुभव पुस्टि होकर सुन्दर बन जाते है | काम न करने वाले अबयब सुखकर बिनष्ट हो जाते है | आधुनिक मानव के गिरे हुए स्वास्थ ,कुरूपता ,अल्पायु का एक प्रधान कारण स्व्थिर गतिविहीन जीवन है | उसे थोड़ी -थोड़ी दूर के लिए सवारी चाहिए | पांवो का समुचित उपयोग न करने पर उसकी जीवन श शक्ति का हासय हो रहा है | चलते रहने का मतलव यह भी है की कुछ न कुछ करते रहो , आलस्य मै जीवन व्यतीत न करो | आलस्य दुश्मन है ,काम करते रहना ही जीवन जागृति का रूप है | आलसी व्यक्ति परिवार तथा समाज का शत्रु है | वह दूसरों से संचित श्रम पर निर्वाह करता है | ऐसे व्यक्ति से प्रतेक परिवार को बचना चहिये | परिवार मै जितने भी व्यक्ति हो ,सभी सक्रिये रहे ,अपना -अपना कार्य जागरूकता से सम्पन करें | मुखिया का कर्तव्य है की बच्चो मै आलस्य न आने दें क्योकि वह उनकी भावी जीवन के हानिकारक है | निरन्तर कार्य करने से वासनाए नियंत्रण होती है|